सच्चे गुरु की पहचान क्या हैं?, सच्चा गुरु कोन होता हैं ? यहा हम एक गुरु के वारे में जानेगे.!!! एक बार एक पूर्ण संत अपने एक प्रिय शिष्य के साथ
अपने आश्रम के पास के वन क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे… _
_ _ _ _ तभी उन संत जी मे अपने आगे आ गे एक बहुत बड़े
और विषैले सर्प को जाते देखा… देख कर अपने शिष्य
से बोले देखो कितना सुंदर प्राणी है… जाओ पकडो
इसे जरा पास से देखें… गुरु का हुक्म सुनते ही शिष्य
बिना तनिक भी डरे या घबराए उस सर्प पर कूद गया
और उसे पकड़ कर अपने गुरु के पास ले आया… अब वो
सर्प इस सब से क्रोधित तो बहुत था परन्तु अपने सामने
एक संत को देख कर शांत ही रहा… संत नें कहा ठीक
है अब जाने दो इसे और उस शिष्य नें उस सर्प को जाने
दिया… अब संत बोले पुत्र तुम्हें उस सर्प से भय नहीं
लगा… वह बोला आपके होते मुझे भय क्यों लगे… हुक्म
आपका था तो भय भी आपको ही लगना चाहिए…
सुन कर संत मुस्करा दिया…
उसी रात्रि जब सब आश्रम में सो रहे थे तो वही सर्प
वहां आ गया और उस शिष्य के पास आ कर फुंकारा…
जैसे बदला लेने आया हो… शिष्य की नींद खुल गयी
और अपने सामने उसी सर्प को देख कर वो कुछ हैरान
हुआ परन्तु बिना डरे उसने फिर से उसे पकडने की
कोशिश की परन्तु इस बार उस सर्प ने उसके हाथ पर
डस लिया… अब पीड़ा में उसने अपने गुरु को समरण
किया… और उसे कुछ भी नहीं हुआ… अगली सुबह वह
अपने गुरु के सम्मुख हाजिर हुआ और रात्रि की बात
कह सुनाई और बोला देख लो मुझे उस विशैले सर्प के
काटने से भी कुछ नहीं हुआ…
तभी संत जी मे अपना हाथ आगे करके दिखाया और
बोले देख ले भाई तेरी जिम्मेदारी ली है तो जो हुआ
यहां हुआ है… उनका हाथ जहर से नीला हो गया
था… अब शिष्य अपने गुरु के आगे नतमस्तक हो गया..
शिष्यों को हो न हो परन्तु गुरु को सदैव अपने
शिष्यों का ध्यान रहता है…
अपने आश्रम के पास के वन क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे… _
_ _ _ _ तभी उन संत जी मे अपने आगे आ गे एक बहुत बड़े
और विषैले सर्प को जाते देखा… देख कर अपने शिष्य
से बोले देखो कितना सुंदर प्राणी है… जाओ पकडो
इसे जरा पास से देखें… गुरु का हुक्म सुनते ही शिष्य
बिना तनिक भी डरे या घबराए उस सर्प पर कूद गया
और उसे पकड़ कर अपने गुरु के पास ले आया… अब वो
सर्प इस सब से क्रोधित तो बहुत था परन्तु अपने सामने
एक संत को देख कर शांत ही रहा… संत नें कहा ठीक
है अब जाने दो इसे और उस शिष्य नें उस सर्प को जाने
दिया… अब संत बोले पुत्र तुम्हें उस सर्प से भय नहीं
लगा… वह बोला आपके होते मुझे भय क्यों लगे… हुक्म
आपका था तो भय भी आपको ही लगना चाहिए…
सुन कर संत मुस्करा दिया…
उसी रात्रि जब सब आश्रम में सो रहे थे तो वही सर्प
वहां आ गया और उस शिष्य के पास आ कर फुंकारा…
जैसे बदला लेने आया हो… शिष्य की नींद खुल गयी
और अपने सामने उसी सर्प को देख कर वो कुछ हैरान
हुआ परन्तु बिना डरे उसने फिर से उसे पकडने की
कोशिश की परन्तु इस बार उस सर्प ने उसके हाथ पर
डस लिया… अब पीड़ा में उसने अपने गुरु को समरण
किया… और उसे कुछ भी नहीं हुआ… अगली सुबह वह
अपने गुरु के सम्मुख हाजिर हुआ और रात्रि की बात
कह सुनाई और बोला देख लो मुझे उस विशैले सर्प के
काटने से भी कुछ नहीं हुआ…
तभी संत जी मे अपना हाथ आगे करके दिखाया और
बोले देख ले भाई तेरी जिम्मेदारी ली है तो जो हुआ
यहां हुआ है… उनका हाथ जहर से नीला हो गया
था… अब शिष्य अपने गुरु के आगे नतमस्तक हो गया..
शिष्यों को हो न हो परन्तु गुरु को सदैव अपने
शिष्यों का ध्यान रहता है…
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