"पर्यावरण प्रदूषण: समस्या और निदान"
1.प्रस्तावना:-
प्रदूषण का अर्थ:-
प्रदूषण पर्यावरण में फेल कर उसे प्रदूषित बनाता है, और इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर उल्टा पड़ता है, इसलिए हमारे आसपास की बाहरी परिस्थितियां जिनमें वायु जल भोजन और सामाजिक परिस्थितिया आती हैं, वह हमारे ऊपर अपना प्रभाव डालती है, प्रदूषण एक अवांछनीय परिवर्तन है, जो वायु जल भोजन इस साल के भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों पर विरोधी प्रभाव डाल कर उनको मनुष्य व अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक एवं अनुपयोगी बना डालता है, कहने का तात्पर्य यह है- कि जीव धारियों के समग्र विकास के लिए और जीवन क्रम को व्यवस्थित करने के लिए वातावरण को शुद्ध बनाए रखना परम आवश्यक है, इस शुद्ध और संतुलित वातावरण में उपयुक्त घटकों की मात्रा निश्चित होनी चाहिए अगर यह जल वायु भोजन आदि सामाजिक परिस्थितियां आपने असंतुलित रूप में होती है एवं उनके मात्रा में कमी या अधिकता होती है जिससे कि वातावरण प्रदूषित हो जाता है एवं जीव धारियों के लिए किसी ना किसी रुप में यह हानिकारक होता है, इसे ही प्रदूषण कहा जाता है|
2.प्रदूषण के विभिन्न प्रकार:-
जल प्रदूषण :-
जल के बिना कोई भी जीवधारी, पेड़, पौधे जीवित नहीं रह सकते हैं|इस जल में भिन्न-भिन्न खनिज तत्व, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं, जो एक विशेष अनुपात में होती है, तो यह सभी के लिए लाभकारी होती है| लेकिन जब इन की मात्रा अनुपात से अधिक हो जाती है; तो जल प्रदूषण हो जाता है और हानिकारक भी बन जाता है| जल प्रदूषण के कारण अनेक रोग पैदा करने वाले जीवाणु, वायरस औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ, रासायनिक खाद आदि हैं| एवं जलाशय में मौजूद मछली आदि जीव मरने लगते हैं ऐसे प्रदूषित जल से टाइफाइड, पेचिस, पीलिया, मलेरिया इत्यादि अनेक रोग फैल जाते हैं| हमारे देश के अनेक शहरों को पेयजल निकटवर्ती नदियों से पहुंचाया जाता है, और उन्ही नदी में आकर शहर के गंदे नाले, कारखानों का बेकार पदार्थ, कचरा जाता है, जो पूर्ण नदियों के जल को प्रदूषित बना देता है|
ध्वनि प्रदूषण:-
प्रदूषण से मनुष्य की सुनने की शक्ति कम हो रही है, उसकी नींद बाधित हो रही है, जिससे नींद ना आने के रोग उत्पन्न हो रहे हैं| मोटर, कार, बस, ट्रैक्टर, लाउडस्पीकर बैंड बाजे और मशीनें अपनी ध्वनि से संपूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित बना रहे हैं| इससे छोटे-छोटे कीटाणु नष्ट हो रहे हैं, और बहुत से पदार्थों का प्राप्त प्राकृतिक स्वरूप भी नष्ट हो रहा है| ध्वनि प्रदूषण के कारण कई तरह के रोग मानव जाति के घटक बनते हैं, जैसे बहरापन, ऊंचा सुनना, मानसिक तनाव, चिढ़चिढ़ापन, सिरदर्द, और गर्भवती महिलाओं को भी यह नुकसान पहुंचाता हैं|
वायु प्रदूषण:-
वायुमंडल में गैस एक निश्चित अनुपात में मिश्रित होती है, और जीव धारियों अपनी क्रियाओं तथा समाज के द्वारा आँक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बनाए रखते हैं| परंतु आज मनुष्य अज्ञान वर्ष आवश्यकता के नाम पर इन सभी के संतुलन को नष्ट कर रहा है| आवश्यकता दिखाकर वह वनों को काट रहा है| जिससे वातावरण में ऑआँक्सीजन कम होती जा रही, मीलों की चिमनियों में से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड, क्लोराइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि भिन्न-भिन्न गैसें हैं, जो वातावरण में बढ़ रही है| वह विभिन्न प्रकार के प्रभाव मानव शरीर पर ही नहीं वस्त्र, धातुएं तथा इमारतों पर भी डालती है| यह प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर, अस्थमा के रोग, हृदय संबंधी रोग, आंखों के रोग, मोहासे इत्यादि रोग फैलाते हैं|
रेडियोधर्मी प्रदूषण:-
परमाणु शक्ति उत्पादन केंद्र और परमाणु परीक्षणों से जलवायु तथा पृथ्वी का संपूर्ण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, और वह वर्तमान पीढ़ी को ही नहीं बल्कि भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए भी हानिकारक सिद्ध हुआ है, जिससे धातुएं पिघल रही है और वह वायु में फेल कर उसके झोंकों के साथ संपूर्ण विश्व में पर्याप्त व्याप्त हो जाते हैं| तथा भिन्न भिन्न रोगों से लोगों को ग्रसित बना देती है|
रासायनिक प्रदूषण:-
आज कृषक अपनी कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक खादों का कीटनाशक और रोगनाशक दवाइयों का प्रयोग कर रहा है, जिससे वर्षा के समय इन खेतों से बहकर आने वाला जल नदियों समुद्रों में पहुंचकर भिन्न भिन्न जीवो के ऊपर घातक प्रभाव डाल रहा है| और उनके शारीरिक विकास पर भी इसका दुष्परिणाम दिखाई दे रहा है|
3.प्रदूषण की समस्या का समाधान:-
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए पिछले कई वर्षों से इस देश भर में प्रयास किया जा रहा है, आज उद्योगीकरण ने इस प्रदूषण की समस्या को अति गंभीर बना दिया है| यह औद्योगिकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न प्रदूषण को व्यक्तिगत और शासकीय दोनों ही स्तर पर रोकने के प्रयास आवश्यक है| भारत सरकार ने सन् 1974 ईसवी में जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम लागू कर दिया था, जिसके अंतर्गत प्रदूषण को रोकने के लिए कई योजनाएं बनाई गई|
सबसे महत्वपूर्ण उपाय प्रदूषण को रोकने का है, वनों का संरक्षण साथ ही नहीं वृक्ष का रोपण तथा उनका विकास करना, जनसामान्य में वृक्षारोपण की प्रेरणा दि जानी चाहिए, इत्यादि प्रदूषण की रोकथाम में सरकारी कदम है| इस बढ़ते हुए प्रदूषण के निवारण के लिए सभी लोगों में जागृति पैदा करना भी महत्वपूर्ण कदम है| जिससे जानकारी प्राप्त कर उस प्रदूषण को दूर करने के संबंधित प्रयास किए जा सकते हैं, कई नगरों और गांव में स्वच्छता बनाए रखने के लिए सही प्रयास किए जाएं, बढ़ती हुई आबादी के निवास के लिए समुचित और सुनियोजित भवन निर्माण की योजना प्रस्तावित की जाए|
4.उपसंहार:-
इस तरह सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण की विशुध्दि के लिए समन्वित प्रयास किए जाएंगे, तब ही मानव समाज वेद वाक्य की अवधारणा को विकसित करके सभी जीव मात्र के सुख समृद्धि की कामना कर सकते हैं|
1.प्रस्तावना:-
प्रदूषण का अर्थ:-
प्रदूषण पर्यावरण में फेल कर उसे प्रदूषित बनाता है, और इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर उल्टा पड़ता है, इसलिए हमारे आसपास की बाहरी परिस्थितियां जिनमें वायु जल भोजन और सामाजिक परिस्थितिया आती हैं, वह हमारे ऊपर अपना प्रभाव डालती है, प्रदूषण एक अवांछनीय परिवर्तन है, जो वायु जल भोजन इस साल के भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों पर विरोधी प्रभाव डाल कर उनको मनुष्य व अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक एवं अनुपयोगी बना डालता है, कहने का तात्पर्य यह है- कि जीव धारियों के समग्र विकास के लिए और जीवन क्रम को व्यवस्थित करने के लिए वातावरण को शुद्ध बनाए रखना परम आवश्यक है, इस शुद्ध और संतुलित वातावरण में उपयुक्त घटकों की मात्रा निश्चित होनी चाहिए अगर यह जल वायु भोजन आदि सामाजिक परिस्थितियां आपने असंतुलित रूप में होती है एवं उनके मात्रा में कमी या अधिकता होती है जिससे कि वातावरण प्रदूषित हो जाता है एवं जीव धारियों के लिए किसी ना किसी रुप में यह हानिकारक होता है, इसे ही प्रदूषण कहा जाता है|
2.प्रदूषण के विभिन्न प्रकार:-
जल प्रदूषण :-
जल के बिना कोई भी जीवधारी, पेड़, पौधे जीवित नहीं रह सकते हैं|इस जल में भिन्न-भिन्न खनिज तत्व, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं, जो एक विशेष अनुपात में होती है, तो यह सभी के लिए लाभकारी होती है| लेकिन जब इन की मात्रा अनुपात से अधिक हो जाती है; तो जल प्रदूषण हो जाता है और हानिकारक भी बन जाता है| जल प्रदूषण के कारण अनेक रोग पैदा करने वाले जीवाणु, वायरस औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ, रासायनिक खाद आदि हैं| एवं जलाशय में मौजूद मछली आदि जीव मरने लगते हैं ऐसे प्रदूषित जल से टाइफाइड, पेचिस, पीलिया, मलेरिया इत्यादि अनेक रोग फैल जाते हैं| हमारे देश के अनेक शहरों को पेयजल निकटवर्ती नदियों से पहुंचाया जाता है, और उन्ही नदी में आकर शहर के गंदे नाले, कारखानों का बेकार पदार्थ, कचरा जाता है, जो पूर्ण नदियों के जल को प्रदूषित बना देता है|
ध्वनि प्रदूषण:-
प्रदूषण से मनुष्य की सुनने की शक्ति कम हो रही है, उसकी नींद बाधित हो रही है, जिससे नींद ना आने के रोग उत्पन्न हो रहे हैं| मोटर, कार, बस, ट्रैक्टर, लाउडस्पीकर बैंड बाजे और मशीनें अपनी ध्वनि से संपूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित बना रहे हैं| इससे छोटे-छोटे कीटाणु नष्ट हो रहे हैं, और बहुत से पदार्थों का प्राप्त प्राकृतिक स्वरूप भी नष्ट हो रहा है| ध्वनि प्रदूषण के कारण कई तरह के रोग मानव जाति के घटक बनते हैं, जैसे बहरापन, ऊंचा सुनना, मानसिक तनाव, चिढ़चिढ़ापन, सिरदर्द, और गर्भवती महिलाओं को भी यह नुकसान पहुंचाता हैं|
वायु प्रदूषण:-
वायुमंडल में गैस एक निश्चित अनुपात में मिश्रित होती है, और जीव धारियों अपनी क्रियाओं तथा समाज के द्वारा आँक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बनाए रखते हैं| परंतु आज मनुष्य अज्ञान वर्ष आवश्यकता के नाम पर इन सभी के संतुलन को नष्ट कर रहा है| आवश्यकता दिखाकर वह वनों को काट रहा है| जिससे वातावरण में ऑआँक्सीजन कम होती जा रही, मीलों की चिमनियों में से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड, क्लोराइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि भिन्न-भिन्न गैसें हैं, जो वातावरण में बढ़ रही है| वह विभिन्न प्रकार के प्रभाव मानव शरीर पर ही नहीं वस्त्र, धातुएं तथा इमारतों पर भी डालती है| यह प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर, अस्थमा के रोग, हृदय संबंधी रोग, आंखों के रोग, मोहासे इत्यादि रोग फैलाते हैं|
रेडियोधर्मी प्रदूषण:-
परमाणु शक्ति उत्पादन केंद्र और परमाणु परीक्षणों से जलवायु तथा पृथ्वी का संपूर्ण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, और वह वर्तमान पीढ़ी को ही नहीं बल्कि भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए भी हानिकारक सिद्ध हुआ है, जिससे धातुएं पिघल रही है और वह वायु में फेल कर उसके झोंकों के साथ संपूर्ण विश्व में पर्याप्त व्याप्त हो जाते हैं| तथा भिन्न भिन्न रोगों से लोगों को ग्रसित बना देती है|
रासायनिक प्रदूषण:-
आज कृषक अपनी कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक खादों का कीटनाशक और रोगनाशक दवाइयों का प्रयोग कर रहा है, जिससे वर्षा के समय इन खेतों से बहकर आने वाला जल नदियों समुद्रों में पहुंचकर भिन्न भिन्न जीवो के ऊपर घातक प्रभाव डाल रहा है| और उनके शारीरिक विकास पर भी इसका दुष्परिणाम दिखाई दे रहा है|
3.प्रदूषण की समस्या का समाधान:-
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए पिछले कई वर्षों से इस देश भर में प्रयास किया जा रहा है, आज उद्योगीकरण ने इस प्रदूषण की समस्या को अति गंभीर बना दिया है| यह औद्योगिकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न प्रदूषण को व्यक्तिगत और शासकीय दोनों ही स्तर पर रोकने के प्रयास आवश्यक है| भारत सरकार ने सन् 1974 ईसवी में जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम लागू कर दिया था, जिसके अंतर्गत प्रदूषण को रोकने के लिए कई योजनाएं बनाई गई|
सबसे महत्वपूर्ण उपाय प्रदूषण को रोकने का है, वनों का संरक्षण साथ ही नहीं वृक्ष का रोपण तथा उनका विकास करना, जनसामान्य में वृक्षारोपण की प्रेरणा दि जानी चाहिए, इत्यादि प्रदूषण की रोकथाम में सरकारी कदम है| इस बढ़ते हुए प्रदूषण के निवारण के लिए सभी लोगों में जागृति पैदा करना भी महत्वपूर्ण कदम है| जिससे जानकारी प्राप्त कर उस प्रदूषण को दूर करने के संबंधित प्रयास किए जा सकते हैं, कई नगरों और गांव में स्वच्छता बनाए रखने के लिए सही प्रयास किए जाएं, बढ़ती हुई आबादी के निवास के लिए समुचित और सुनियोजित भवन निर्माण की योजना प्रस्तावित की जाए|
4.उपसंहार:-
इस तरह सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण की विशुध्दि के लिए समन्वित प्रयास किए जाएंगे, तब ही मानव समाज वेद वाक्य की अवधारणा को विकसित करके सभी जीव मात्र के सुख समृद्धि की कामना कर सकते हैं|
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