Friday, 29 July 2016
What Is a Terrestrial Magnetism In Hindi:पार्थिव चुंबकत्व क्या हैं हीन्दी में..
पार्थिव चुंबकत्व(Terrestrial Magnetism):-
पृथ्वी एक चुंबक की तरह व्यवहार करती है| पृथ्वी के चुंबकत्व को ही पार्थिव चुंबकत्व कहते है|
16वीं सदी में इंग्लैंड के प्रसिद्ध विज्ञानिक 'गिल्बर्ट' ने मैग्नेटाइट या चुंबक पत्थर को एक गोले की आकृति में काटा था उन्होंने पाया कि ऊर्ध्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतंत्र चुंबकीय सुई इस गोले के भिन्न-भिन्न भागों पर ठीक उसी तरह व्यवहार करती है जैसा कि पृथ्वी के भिन्न-भिन्न स्थानों पर होता है इस बात से सिद्ध हुआ कि पृथ्वी एक चुंबक की भांति कार्य करती है|
पार्थिव चुंबक की पुष्टि करने हेतु प्रमाण:-
छैतिज तल में घूमने के लिए स्वतंत्र चुंबक सदैव उत्तर दक्षिण दिशा में रहता है यह तभी संभव है जब कि पृथ्वी चुंबक की भांति कार्य करें चुंबकीय बल रेखाएं खींचते समय उदासीन बिंदु प्राप्त होते हैं, उदासीन बिंदु पर परिणामी तीव्रता शून्य होती है| इस बिंदु पर चुम्बक के चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता अन्य चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता से संतुलित हो जाती है| चुम्बक के पास अन्य चुंबक नहीं है और संतुलित करने वाला चुंबकीय क्षेत्र प्रथ्वी का ही चुंबकीय क्षेत्र होना चाहिए| लोहे की एक छड़ को उत्तर दक्षिण दिशा में गार्ड देने पर वह कुछ समय पश्चात चमक बन जाती है यह तभी संभव है, जब प्रथ्वी चुम्बक की भांति कार्य करें|
पृथ्वी एक चुंबक की तरह व्यवहार करती है| पृथ्वी के चुंबकत्व को ही पार्थिव चुंबकत्व कहते है|
16वीं सदी में इंग्लैंड के प्रसिद्ध विज्ञानिक 'गिल्बर्ट' ने मैग्नेटाइट या चुंबक पत्थर को एक गोले की आकृति में काटा था उन्होंने पाया कि ऊर्ध्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतंत्र चुंबकीय सुई इस गोले के भिन्न-भिन्न भागों पर ठीक उसी तरह व्यवहार करती है जैसा कि पृथ्वी के भिन्न-भिन्न स्थानों पर होता है इस बात से सिद्ध हुआ कि पृथ्वी एक चुंबक की भांति कार्य करती है|
पार्थिव चुंबक की पुष्टि करने हेतु प्रमाण:-
छैतिज तल में घूमने के लिए स्वतंत्र चुंबक सदैव उत्तर दक्षिण दिशा में रहता है यह तभी संभव है जब कि पृथ्वी चुंबक की भांति कार्य करें चुंबकीय बल रेखाएं खींचते समय उदासीन बिंदु प्राप्त होते हैं, उदासीन बिंदु पर परिणामी तीव्रता शून्य होती है| इस बिंदु पर चुम्बक के चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता अन्य चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता से संतुलित हो जाती है| चुम्बक के पास अन्य चुंबक नहीं है और संतुलित करने वाला चुंबकीय क्षेत्र प्रथ्वी का ही चुंबकीय क्षेत्र होना चाहिए| लोहे की एक छड़ को उत्तर दक्षिण दिशा में गार्ड देने पर वह कुछ समय पश्चात चमक बन जाती है यह तभी संभव है, जब प्रथ्वी चुम्बक की भांति कार्य करें|
Tuesday, 12 July 2016
समय का सदुपयोग प्रस्तावना नष्ट हुई संपत्ति और कोई हुए वैभव को पुनः प्राप्त करने के लिए मनुष्य निरंतर मेहनत करता है 1 दिनों से सफलता मिल ही जाती है खोया हुआ स्वास्थ्य और नष्ट हुआ धन पुणे प्राप्त किया जा सकता है किंतु खोया हुआ था फिर वापस नहीं मिलता समय ना तो मनुष्य की प्रतीक्षा करता है और ना परवाह समय का रथ तो तेजी से चल रहा है उसे कोई भी रोक नहीं सकता
निबंध राष्ट्र निर्माण देश की प्रगति में छात्रों का योगदान
"राष्ट्र निर्माण देश की प्रगति में छात्रों का योगदान"
"चाहे जो हो धर्म तुम्हारा,
चाहे जो वादी हो|
नहीं जी रहे अगर देश हित,
तो निश्चय ही अपराधी हो|"
1.प्रस्तावना:-
राष्ट्र का वास्तविक अर्थ उस देश की भूमि नहीं वरन देश की भूमि में रहने वाली जनता है, जनता की सुख-समृद्धि ही राष्ट्र की सच्ची प्रगति है| आज के विद्यार्थी कल देश के नागरिक होंगे, छात्र जीवन में ही उनके मन में राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना यदि भर जाए तो वे राष्ट्र की उन्नति में सहायक होंगे जिस मातृभूमि की गोद में हमने जन्म लिया है| जिस की धरती से हमारा पालन पोषण हुआ है, उस देश की सेवा प्रगति में कुछ विशिष्ट लोगों का साथ हो यह ठीक नहीं बल्कि आज के छात्रों को भी इस प्रगति में पूर्ण सहयोग देना चाहिए| छात्रों को ना केवल अपने अधिकारों के बारे में सचेत रहना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने कर्तव्य के प्रति भी उतनी ही निष्ठा रखनी चाहिए,जितनी कि वह अपने उचित काम के प्रति रखते रखते हैं|
2.छात्र देश का अविभाज्य अंग:-
छात्र देश के कर्णधार हैं, समाज व्यक्ति से ही बनता है| वह बहुत सी इकाइयों का समूह है और छात्र देश के अविभाज्य अंग है, छात्रों का प्रत्येक निष्ठापूर्वक किया हुआ कार्य देश को, देश के चरित्र को, देश के मान-सम्मान और गौरव को बनाता है| और इनके ही कृतियों द्वारा देश बदनाम होता है| उसकी अवनति होती है, छात्रों की प्रत्येक गतिविधि की परछाईं देश के चरित्र में स्पष्ट झलकती है| हमारी प्रगति ही देश की प्रगति है, इस बात को भली प्रकार से समझ लेना ही उचित होगा|
3.छात्र देश के भावी कर्णधार:-
छात्रों का स्वध्याय चिंतन, मनन, उनके शिष्ट व्यवहार, मधुर सम्मान यह सब देश की प्रगति का सूचक ही है| छात्र और जनता अच्छी होगी तो देश अच्छा कहलाएगा| यदि छात्र अनुशासित होंगे तो देश अनुशासित कहलाएगा ईमानदारी, सच्चाई और दूसरों के क्रियाकलाप में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना ही एक प्रगतिशील राष्ट्र की निशानी है| छात्र शांत, चित्त और अन्य श्रद्धा से शिक्षा ग्रहण करें, यही देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान है| क्योंकि यह ही देश के भावी कर्णधार हैं और देश को महान बनाने के कर्म में लगे हुए हैं|
शिक्षण और स्वध्याय से जो समय बचे उसमें छात्रों को अपने सच्चे समय का सदुपयोग करना चाहिए|
4.देश के प्रति छात्रों का कर्तव्य छात्र:-
प्रौढ़ शिक्षा एवं साक्षरता आंदोलन में भाग लेकर अशिक्षित को शिक्षित बनाने का काम कर सकते हैं| सार्वजनिक रूप से व्याख्यान मालाओं का आयोजन कर देश के चरित्र को ऊंचा उठाने में नैतिक मूल्यों की मान्यता की, धर्मनिरपेक्षता की, शिक्षा का प्रचार कर एकता का प्रयास कर सकते हैं| अकाल ग्रस्त या भूकंप पीड़ित, ओलावृष्टि से प्रभावित क्षेत्रों के लिए टोलियां बना कर धन सामग्री एकत्रित कर उनकी सहायता कर सकते हैं|
बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में जाकर डूबने वाले व्यक्तियों को बचाया जा सकते हैं| स्वयं सेवी संस्थाओं का निर्माण भी कर सकते हैं| जो देवी विपत्ति के समय हरदम मदद को तैयार रहें, अवकाश के समय गांव में जाकर श्रमदान द्वारा सड़क निर्माण, कुओं की सफाई, परिसर की स्वच्छता के लिए प्रयास कर सकते हैं| कृषि की उन्नति में नवीन विज्ञानिक साधनों की, उन्नत बीजों की, खाद, दवा की जानकारी दे सकते हैं| इसके अतिरिक्त छात्रों का देश की प्रगति में जो योगदान है, उस में महत्वपूर्ण भूमिका यह है| कि वह देश की संपत्ति का विनाश ना करें देश के अराजक तत्वों छात्रों के माध्यम से देश में महाविद्यालय में स्थान स्थान पर तोड़फोड़ करवा कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, इससे छात्रों को दूर रहना चाहिए|
5. एक निष्ठ भाव से अध्ययन:-
देश की प्रगति में छात्रों के योगदान का आशा है, की निष्ठा भाव से अध्ययन करना | क्योंकि विद्या प्राप्ति के लिए एक अवस्था और एक समय निश्चित है| यदि इस अवस्था में एक निष्ठा का अभाव रहा तो भावी जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति संभव नहीं है, जीवन की नींव ही यदि कमजोर हुई तो उस पर जो घर खड़ा होगा, वह स्थाई नहीं रह पाएगा वह केवल लड़खड़ाते हुए अपनी जिंदगी काटेगा| यदि छात्र संपूर्ण तन्मयता से एक श्रेष्ठ सुसंस्कृत सभ्य नागरिक बनने की तैयारी करें रहे हैं, तो यही देश सेवा है| छात्र चाहे तो कुशल, व्यवसाई, विद्वान, वक्ता, सफल, प्रसिद्ध, निपुण कलाकार कुछ भी बन सकता है और यही आज का छात्र कल का सभ्य नागरिक बन कर देश की प्रगति में सहायक होगा|
6.उपसन्हार:-
छात्रों का देश की प्रगति में जो योगदान है| उसमें महत्वपूर्ण यह है, कि वह देश की संपत्ति का विनाश ना करें| देश के अराजक तत्वों छात्रों के माध्यम से देश में महाविद्यालयों में स्थान स्थान पर तोड़फोड़ करवाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं| ऐसे छात्रों को दूर रहना चाहिए| छात्र जीवन विद्यार्थी की वह अवस्था होती है जिसमे मनुष्य अटूट शक्ति संपन्न होता है, उनमें कार्य संपादन की अभूतपूर्व क्षमता होती है| मन मस्तिष्क तेज होते हैं, यदि उन्हें सही दिशा में ले और उनकी शक्ति का उचित मार्ग यांत्रिकरण हो तो वह देश की प्रगति में अत्यंत लाभप्रद सिद्ध साबित होंगे| भारतीय छात्र पूर्ण शक्ति और सामर्थ्य से देश को आगे बढ़ाएं ताकि देश उन्नति कर सके|
"जय हिंद जय जवान जय किसान"
"चाहे जो हो धर्म तुम्हारा,
चाहे जो वादी हो|
नहीं जी रहे अगर देश हित,
तो निश्चय ही अपराधी हो|"
1.प्रस्तावना:-
राष्ट्र का वास्तविक अर्थ उस देश की भूमि नहीं वरन देश की भूमि में रहने वाली जनता है, जनता की सुख-समृद्धि ही राष्ट्र की सच्ची प्रगति है| आज के विद्यार्थी कल देश के नागरिक होंगे, छात्र जीवन में ही उनके मन में राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना यदि भर जाए तो वे राष्ट्र की उन्नति में सहायक होंगे जिस मातृभूमि की गोद में हमने जन्म लिया है| जिस की धरती से हमारा पालन पोषण हुआ है, उस देश की सेवा प्रगति में कुछ विशिष्ट लोगों का साथ हो यह ठीक नहीं बल्कि आज के छात्रों को भी इस प्रगति में पूर्ण सहयोग देना चाहिए| छात्रों को ना केवल अपने अधिकारों के बारे में सचेत रहना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने कर्तव्य के प्रति भी उतनी ही निष्ठा रखनी चाहिए,जितनी कि वह अपने उचित काम के प्रति रखते रखते हैं|
2.छात्र देश का अविभाज्य अंग:-
छात्र देश के कर्णधार हैं, समाज व्यक्ति से ही बनता है| वह बहुत सी इकाइयों का समूह है और छात्र देश के अविभाज्य अंग है, छात्रों का प्रत्येक निष्ठापूर्वक किया हुआ कार्य देश को, देश के चरित्र को, देश के मान-सम्मान और गौरव को बनाता है| और इनके ही कृतियों द्वारा देश बदनाम होता है| उसकी अवनति होती है, छात्रों की प्रत्येक गतिविधि की परछाईं देश के चरित्र में स्पष्ट झलकती है| हमारी प्रगति ही देश की प्रगति है, इस बात को भली प्रकार से समझ लेना ही उचित होगा|
3.छात्र देश के भावी कर्णधार:-
छात्रों का स्वध्याय चिंतन, मनन, उनके शिष्ट व्यवहार, मधुर सम्मान यह सब देश की प्रगति का सूचक ही है| छात्र और जनता अच्छी होगी तो देश अच्छा कहलाएगा| यदि छात्र अनुशासित होंगे तो देश अनुशासित कहलाएगा ईमानदारी, सच्चाई और दूसरों के क्रियाकलाप में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना ही एक प्रगतिशील राष्ट्र की निशानी है| छात्र शांत, चित्त और अन्य श्रद्धा से शिक्षा ग्रहण करें, यही देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान है| क्योंकि यह ही देश के भावी कर्णधार हैं और देश को महान बनाने के कर्म में लगे हुए हैं|
शिक्षण और स्वध्याय से जो समय बचे उसमें छात्रों को अपने सच्चे समय का सदुपयोग करना चाहिए|
4.देश के प्रति छात्रों का कर्तव्य छात्र:-
प्रौढ़ शिक्षा एवं साक्षरता आंदोलन में भाग लेकर अशिक्षित को शिक्षित बनाने का काम कर सकते हैं| सार्वजनिक रूप से व्याख्यान मालाओं का आयोजन कर देश के चरित्र को ऊंचा उठाने में नैतिक मूल्यों की मान्यता की, धर्मनिरपेक्षता की, शिक्षा का प्रचार कर एकता का प्रयास कर सकते हैं| अकाल ग्रस्त या भूकंप पीड़ित, ओलावृष्टि से प्रभावित क्षेत्रों के लिए टोलियां बना कर धन सामग्री एकत्रित कर उनकी सहायता कर सकते हैं|
बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में जाकर डूबने वाले व्यक्तियों को बचाया जा सकते हैं| स्वयं सेवी संस्थाओं का निर्माण भी कर सकते हैं| जो देवी विपत्ति के समय हरदम मदद को तैयार रहें, अवकाश के समय गांव में जाकर श्रमदान द्वारा सड़क निर्माण, कुओं की सफाई, परिसर की स्वच्छता के लिए प्रयास कर सकते हैं| कृषि की उन्नति में नवीन विज्ञानिक साधनों की, उन्नत बीजों की, खाद, दवा की जानकारी दे सकते हैं| इसके अतिरिक्त छात्रों का देश की प्रगति में जो योगदान है, उस में महत्वपूर्ण भूमिका यह है| कि वह देश की संपत्ति का विनाश ना करें देश के अराजक तत्वों छात्रों के माध्यम से देश में महाविद्यालय में स्थान स्थान पर तोड़फोड़ करवा कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, इससे छात्रों को दूर रहना चाहिए|
5. एक निष्ठ भाव से अध्ययन:-
देश की प्रगति में छात्रों के योगदान का आशा है, की निष्ठा भाव से अध्ययन करना | क्योंकि विद्या प्राप्ति के लिए एक अवस्था और एक समय निश्चित है| यदि इस अवस्था में एक निष्ठा का अभाव रहा तो भावी जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति संभव नहीं है, जीवन की नींव ही यदि कमजोर हुई तो उस पर जो घर खड़ा होगा, वह स्थाई नहीं रह पाएगा वह केवल लड़खड़ाते हुए अपनी जिंदगी काटेगा| यदि छात्र संपूर्ण तन्मयता से एक श्रेष्ठ सुसंस्कृत सभ्य नागरिक बनने की तैयारी करें रहे हैं, तो यही देश सेवा है| छात्र चाहे तो कुशल, व्यवसाई, विद्वान, वक्ता, सफल, प्रसिद्ध, निपुण कलाकार कुछ भी बन सकता है और यही आज का छात्र कल का सभ्य नागरिक बन कर देश की प्रगति में सहायक होगा|
6.उपसन्हार:-
छात्रों का देश की प्रगति में जो योगदान है| उसमें महत्वपूर्ण यह है, कि वह देश की संपत्ति का विनाश ना करें| देश के अराजक तत्वों छात्रों के माध्यम से देश में महाविद्यालयों में स्थान स्थान पर तोड़फोड़ करवाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं| ऐसे छात्रों को दूर रहना चाहिए| छात्र जीवन विद्यार्थी की वह अवस्था होती है जिसमे मनुष्य अटूट शक्ति संपन्न होता है, उनमें कार्य संपादन की अभूतपूर्व क्षमता होती है| मन मस्तिष्क तेज होते हैं, यदि उन्हें सही दिशा में ले और उनकी शक्ति का उचित मार्ग यांत्रिकरण हो तो वह देश की प्रगति में अत्यंत लाभप्रद सिद्ध साबित होंगे| भारतीय छात्र पूर्ण शक्ति और सामर्थ्य से देश को आगे बढ़ाएं ताकि देश उन्नति कर सके|
"जय हिंद जय जवान जय किसान"
Monday, 11 July 2016
निबंध दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप.
"दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप"
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी|
आंचल में है दूध और आंखों में पानी||"
1.प्रस्तावना:-
समाज के अंतर्गत समस्याओं का विकराल जाल फैला हुआ है| यह छोटी छोटी तुच्छ तथा साधारण समस्याएं कभी-कभी जी का जंजाल बन जाती है|लाड-प्यार से पाली-पोषित शिशु भी बड़ा होकर मां-बाप पर बोझ बन जाती है उसी तरह यह समस्याएं भी जी के जंजाल की तरह बन जाती है| समाज के रुप को विकृत तथा घिनौना बना देती है, उन समस्याओं में से एक विकराल समस्या है, दहेज प्रथा समाज की जड़ो को खोखला किए दे रही है, इसे समाज तथा व्यक्तिगत प्रगति पर विराम सा लग चुका है| अनुराग एवं वात्सल्य का तेज दहेज युग परिवर्तन के साथ खुद भी परिवर्तित होकर विशाल रूप मैं उपस्थित हो रहा है|
2.दहेज का आशय एवं स्वरुप:-
साधारण रूप में दहेज वह संपत्ति है जिसे पिता अपनी पुत्री को इच्छा अनुसार प्रदान करता है| पुराने समय से ही दहेज का चलन चल रहा है, इसके अंतर्गत के समय वर पक्ष और कन्या पक्ष को आभूषण, वस्त्र एवं रुपए प्रदान किए जाते थे परंतु समय के साथ-साथ यह परंपरा एवं परवर्ती अपरिहार्य तथा आवश्यक बन गई, आज वर पक्ष दहेज के रूप में tv, फ्रिज, मोटर साइकल एवं कार, वॉशिंग मशीन आदि की निसंकोच मांग करता है| इनके अभाव में सुशिक्षित एवं योग्य कन्या को मनचाहा जीवन साथी नहीं मिल पाता है|
इस स्थिति में निर्धन पिता की पुत्री या तो अविवाहित रहकर पिता, सदा परिवार के लिए बोझ बन जाती है| बेमेल विवाह योग्य वर के साथ जीवन जीने के लिए विवश हो जाती है| दहेज की कुप्रथा ने अनेक युक्तियों को काल के मुंह में डाल दिया है, समाचार पत्र आए दिन इस प्रकार की आवाज में घटनाओं से भरी रहती हैं| रावण ने सीता का अपहरण करके उसकी जिंदगी को अभीशप्त, दुख-दर्द तथा आंसुओं की गाथा बनाया था, परंतु दहेज रूपी रावण ने असंख्य कन्याओं के सोभाग्य सिंदूर को पोंच कर उनकी जिंदगी को पीड़ाओं की अमर गाथा बना दिया है|
3.दहेज प्रथा का अविर्भाव:-
यदि इतिहास की धुंधली दुरबीन उठाकर भूतकाल की पगडंडी पर दृष्टिपात करते हैं तो यह बात स्पष्ट होती है कि दहेज प्रथा का प्रचलन सामंती युग में भी था| सामंत अपनी बेटियों की शादी में आभूषण एवं दास, दासियं उपहार के रुप में प्रदान किया करते थे|समय-समय पर इस बुरी प्रथा ने संपूर्ण समाज को भी अपनी परिधि में समेट लिया इस कुप्रथा के लिए झूठी शान रुढ़िवादिता तथा धर्म का अंधानुकरण उत्तरदाई है|
4. दहेज के दुष्परिणाम:-
दहेज के फलस्वरूप आज सामाजिक वातावरण विषैला, दूषित एवं घृणित हो गया है| अनमोल विवाहों की भरमार है जिसके कारण परिवार एवं घर में प्रतिपल संघर्ष एवं कोहराम मचा रहता है|जिस बहू के घर से दहेज में यथेष्ट धन नहीं दिया जाता, ससुराल में आकर उसे जो पीड़ा एवं ताने मिलते हैं| उसकी कल्पना मात्र से शरीर सिहरने लगता है| कभी-कभी उसे ससुराल वालों द्वारा जहर दे दिया जाता है या फिर जला कर मार दिया जाता है|मनुष्य क्षणभर के लिए या सोचने के लिए विवश हो जाता है, कि आदर्श भारत का जिंदगी का रथ किस ओर अग्रसर हो रहा है| प्रेरणा सूत्र में बंधने के पश्चात जहां संबंध, अनुराग एवं भाईचारे के होने के चाहिए वह आज कटुता एवं शत्रुता पैर पसारे हुए हैं|
5.नौजवानों का कर्तव्य:-
दहेज प्रथा समस्या का निराकरण समाज एवं सरकार के बूते का कार्य नहीं है|इसके लिए तो युवक एवं युक्तियों को स्वयं आगे बढ़कर दहेज ना लेने एवं देने की द्रण प्रतिज्ञा करनी चाहिए|मात्र कानून बनाने से इस समस्या का निराकरण नहीं हो सकता है जितने कानून नियमित किए जा रहे हैं, दहेज लेने एवं देने वाले शोध ग्रंथों की तरह उपाय खोजने में सफल हो रहे हैं| इस प्रथा को समाप्त करने के लिए महिलाओं को इस संदर्भ में प्रयास करना चाहिए, इसके लिए एक प्रभावी andolan भी चलाना चाहिए सरकार को भी कठोर कानून बनाकर इस बुरी प्रथा पर प्रतिबंध लगाना चाहिए|
शासन में सन् 1961 में दहेज विरोधी कानून पारित किया था| सन 1976 में इसमें कुछ संशोधन भी किए गए थे, किंतु फिर भी दहेज पर अंकुश नहीं लग सका| समाज सुधारक भी इस दिशा में पर्याप्त सहयोग दे सकते हैं, दहेज लेने वालों का सामाजिक बहिष्कार आवश्यक है| सहशिक्षा भी दहेज प्रथा को रोकने में सक्षम है, सामाजिक चेतना को जागृत करना भी आवश्यक है|
6.उपसन्हार:-
अनेक वर्षों से इस बुरी प्रथा को समाप्त करने के लिए भागीरथ प्रयास किया जा रहा है, लेकिन दहेज का कैंसर ठीक नहीं होने के स्थान पर निरंतर विकराल रुप धारण करता जा रहा है| इस कुप्रथा का तभी समापन होगा, जब वर पक्ष एवं कन्या पक्ष सम्मिलित रुप से इस प्रथा को समाप्त करने में सक्षम होंगे, यदि इस दिशा में जरा भी उपेक्षा अपनाई गई तो यह ऐसा कोड है जो समाज रूपी शरीर को विकृत एवं दुर्गंध से आ पूरित कर देगा| समाज एवं शासन दोनों को जोरदार तरीके से दहेज विरोधी अभियान प्रारंभ करना परम आवश्यक है|
अब तो एक ही नारा होना चाहिए- "दुल्हन ही दहेज है" यह नारा मात्र कल्पना की भूमि पर विहार करने वाला ना होकर समाज की यथार्थ धरती पर स्थित होना चाहिए, तभी भारत के कण-कण से सावित्री, सीता एवं गार्गी तुल्य कन्याओं की ही यह ध्वनि गूंजेगी|
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी|
आंचल में है दूध और आंखों में पानी||"
1.प्रस्तावना:-
समाज के अंतर्गत समस्याओं का विकराल जाल फैला हुआ है| यह छोटी छोटी तुच्छ तथा साधारण समस्याएं कभी-कभी जी का जंजाल बन जाती है|लाड-प्यार से पाली-पोषित शिशु भी बड़ा होकर मां-बाप पर बोझ बन जाती है उसी तरह यह समस्याएं भी जी के जंजाल की तरह बन जाती है| समाज के रुप को विकृत तथा घिनौना बना देती है, उन समस्याओं में से एक विकराल समस्या है, दहेज प्रथा समाज की जड़ो को खोखला किए दे रही है, इसे समाज तथा व्यक्तिगत प्रगति पर विराम सा लग चुका है| अनुराग एवं वात्सल्य का तेज दहेज युग परिवर्तन के साथ खुद भी परिवर्तित होकर विशाल रूप मैं उपस्थित हो रहा है|
2.दहेज का आशय एवं स्वरुप:-
साधारण रूप में दहेज वह संपत्ति है जिसे पिता अपनी पुत्री को इच्छा अनुसार प्रदान करता है| पुराने समय से ही दहेज का चलन चल रहा है, इसके अंतर्गत के समय वर पक्ष और कन्या पक्ष को आभूषण, वस्त्र एवं रुपए प्रदान किए जाते थे परंतु समय के साथ-साथ यह परंपरा एवं परवर्ती अपरिहार्य तथा आवश्यक बन गई, आज वर पक्ष दहेज के रूप में tv, फ्रिज, मोटर साइकल एवं कार, वॉशिंग मशीन आदि की निसंकोच मांग करता है| इनके अभाव में सुशिक्षित एवं योग्य कन्या को मनचाहा जीवन साथी नहीं मिल पाता है|
इस स्थिति में निर्धन पिता की पुत्री या तो अविवाहित रहकर पिता, सदा परिवार के लिए बोझ बन जाती है| बेमेल विवाह योग्य वर के साथ जीवन जीने के लिए विवश हो जाती है| दहेज की कुप्रथा ने अनेक युक्तियों को काल के मुंह में डाल दिया है, समाचार पत्र आए दिन इस प्रकार की आवाज में घटनाओं से भरी रहती हैं| रावण ने सीता का अपहरण करके उसकी जिंदगी को अभीशप्त, दुख-दर्द तथा आंसुओं की गाथा बनाया था, परंतु दहेज रूपी रावण ने असंख्य कन्याओं के सोभाग्य सिंदूर को पोंच कर उनकी जिंदगी को पीड़ाओं की अमर गाथा बना दिया है|
3.दहेज प्रथा का अविर्भाव:-
यदि इतिहास की धुंधली दुरबीन उठाकर भूतकाल की पगडंडी पर दृष्टिपात करते हैं तो यह बात स्पष्ट होती है कि दहेज प्रथा का प्रचलन सामंती युग में भी था| सामंत अपनी बेटियों की शादी में आभूषण एवं दास, दासियं उपहार के रुप में प्रदान किया करते थे|समय-समय पर इस बुरी प्रथा ने संपूर्ण समाज को भी अपनी परिधि में समेट लिया इस कुप्रथा के लिए झूठी शान रुढ़िवादिता तथा धर्म का अंधानुकरण उत्तरदाई है|
4. दहेज के दुष्परिणाम:-
दहेज के फलस्वरूप आज सामाजिक वातावरण विषैला, दूषित एवं घृणित हो गया है| अनमोल विवाहों की भरमार है जिसके कारण परिवार एवं घर में प्रतिपल संघर्ष एवं कोहराम मचा रहता है|जिस बहू के घर से दहेज में यथेष्ट धन नहीं दिया जाता, ससुराल में आकर उसे जो पीड़ा एवं ताने मिलते हैं| उसकी कल्पना मात्र से शरीर सिहरने लगता है| कभी-कभी उसे ससुराल वालों द्वारा जहर दे दिया जाता है या फिर जला कर मार दिया जाता है|मनुष्य क्षणभर के लिए या सोचने के लिए विवश हो जाता है, कि आदर्श भारत का जिंदगी का रथ किस ओर अग्रसर हो रहा है| प्रेरणा सूत्र में बंधने के पश्चात जहां संबंध, अनुराग एवं भाईचारे के होने के चाहिए वह आज कटुता एवं शत्रुता पैर पसारे हुए हैं|
5.नौजवानों का कर्तव्य:-
दहेज प्रथा समस्या का निराकरण समाज एवं सरकार के बूते का कार्य नहीं है|इसके लिए तो युवक एवं युक्तियों को स्वयं आगे बढ़कर दहेज ना लेने एवं देने की द्रण प्रतिज्ञा करनी चाहिए|मात्र कानून बनाने से इस समस्या का निराकरण नहीं हो सकता है जितने कानून नियमित किए जा रहे हैं, दहेज लेने एवं देने वाले शोध ग्रंथों की तरह उपाय खोजने में सफल हो रहे हैं| इस प्रथा को समाप्त करने के लिए महिलाओं को इस संदर्भ में प्रयास करना चाहिए, इसके लिए एक प्रभावी andolan भी चलाना चाहिए सरकार को भी कठोर कानून बनाकर इस बुरी प्रथा पर प्रतिबंध लगाना चाहिए|
शासन में सन् 1961 में दहेज विरोधी कानून पारित किया था| सन 1976 में इसमें कुछ संशोधन भी किए गए थे, किंतु फिर भी दहेज पर अंकुश नहीं लग सका| समाज सुधारक भी इस दिशा में पर्याप्त सहयोग दे सकते हैं, दहेज लेने वालों का सामाजिक बहिष्कार आवश्यक है| सहशिक्षा भी दहेज प्रथा को रोकने में सक्षम है, सामाजिक चेतना को जागृत करना भी आवश्यक है|
6.उपसन्हार:-
अनेक वर्षों से इस बुरी प्रथा को समाप्त करने के लिए भागीरथ प्रयास किया जा रहा है, लेकिन दहेज का कैंसर ठीक नहीं होने के स्थान पर निरंतर विकराल रुप धारण करता जा रहा है| इस कुप्रथा का तभी समापन होगा, जब वर पक्ष एवं कन्या पक्ष सम्मिलित रुप से इस प्रथा को समाप्त करने में सक्षम होंगे, यदि इस दिशा में जरा भी उपेक्षा अपनाई गई तो यह ऐसा कोड है जो समाज रूपी शरीर को विकृत एवं दुर्गंध से आ पूरित कर देगा| समाज एवं शासन दोनों को जोरदार तरीके से दहेज विरोधी अभियान प्रारंभ करना परम आवश्यक है|
अब तो एक ही नारा होना चाहिए- "दुल्हन ही दहेज है" यह नारा मात्र कल्पना की भूमि पर विहार करने वाला ना होकर समाज की यथार्थ धरती पर स्थित होना चाहिए, तभी भारत के कण-कण से सावित्री, सीता एवं गार्गी तुल्य कन्याओं की ही यह ध्वनि गूंजेगी|
Saturday, 9 July 2016
Essay of Weightage of forest: निबंध बन महोत्सव एवं वृक्षारोपण या वन संरक्षण एवं जीवन में वनो का महत्व
बन महोत्सव
अथवा
वृक्षारोपण या वन संरक्षण
अथवा
जीवन में वनो का महत्व
1.प्रस्तावना:-
भारतवर्ष का मौसम और जलवायु देशों में सर्वश्रेष्ठ है, इसकी प्राकृतिक रमणीयता और हरित वैभव विख्यात है विदेशी पर्यटक यहां की मनोहारी प्राकृतिक सुषमा देखकर मोहित हो जाते हैं|
2.प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति में वृक्षों की महत्ता:-
हमारे देश की प्राचीन संस्कृति में वृक्षों की पूजा और आराधना की जाती है|तथा नेतृत्व की उपाधि दी जाती है|बच्चों को प्रकृति ने मानव की मूल आवश्यकता से जोड़ा है| किसी ने कहा है कि- वृक्ष ही जल है, जल ही अन्न है,और अन्न ही जीवन है| यदि वृक्ष न होते तो नदी और आसमान ना होते वृक्ष की जड़ों के साथ वर्षा का जल जमीन के भीतर पहुंचता है, वन हमारी सभ्यता और संस्कृतिके रक्षक है|शांति और एकांत की खोज में हमारे ऋषि मुनि वनों में रहते थे, वहां उन्होंने तत्व ज्ञान प्राप्त किया और वह विश्व कल्याण के उपाय भी सोचते, वही गुरुकुल होते थे| जिसमें भावी राजा, दार्शनिक, पंडित आदि शिक्षा ग्रहण करते थे|आयुर्वेद के अनुसार पेड़ पौधों की सहायता से मानव को स्वस्थ एवं दीर्घायु किया जा सकता है| तीव्र गति से जनसंख्या बढ़ने तथा राष्ट्रों के ओद्योगिक विकास कार्यक्रमों के कारण पर्यावरण की समस्या गंभीर हो रही है| प्राकृतिक साधनों के अधिक और अधिक उपयोग से पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है|वृक्षों की भारी तादाद में कटाई से जलवायु बदल रही है|ताप की मात्रा बढ़ती जा रही है, नदियों का जल दूषित होता जा रहा है, वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है, इसे भी भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य को खतरा है|
3.वृक्षों की उपासना का प्रचलन:-
वृक्षों के महत्व एवं गौरव को समझते हुए हमारी प्राचीन परंपरा में इनकी आराधना पर बल दिया गया है|पीपल के वृक्ष की पूजा करना, व्रत रखकर उसकी परिक्रमा करना एवं जल अर्पण करना और पीपल को काटना पाप करने के सामान है|यह धारणा वृक्षों की संपत्ति की रक्षा का भाव प्रकट करती है| प्रत्येक हिंदू के आंगन में तुलसी का पौधा अवश्य में देखने को मिलता है| तुलसी पत्र का सेवन प्रसाद में आवश्यक माना गया है| बेल के वृक्ष, फल और बेलपत्र की महिमा इतनी है, कि वह शिवजी पर चढ़ाए जाते हैं| कदम वृक्ष को श्री कृष्ण का प्रिय पेड़ बताया है तथा अशोक के वृक्ष शुभ और मंगल दायक हैं| इन वृक्ष की रक्षा हेतु कहते हैं कि-हरे वृक्षों को काटना पाप है, श्याम के समय किसी वृक्ष के पत्ते तोड़ना मना है वृक्ष सो जाते हैं |यह सब हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक है| जिसमें वृक्षों को ईश्वर स्वरूप, वन को संपदा और वृक्षों को काटने वालों को अपराधी कहा जाता है|
4.वृक्षों से लाभ:-
वृक्षों से स्वास्थ्य लाभ होता है क्योंकि मनुष्य के श्वास प्रक्रिया से जो दूषित हवा बाहर निकलती है, वृक्ष उन्हे ग्रहण कर, हमें बदले में स्वच्छ हवा देते हैं| आंखों की थकान दूर करने और तनाव से छुटकारा पाने के लिए विस्तृत वनों की हरियाली हमें शांति प्रदान कर आंखों की ज्योति को बढ़ाती है|वृक्ष बालक से लेकर बुजुर्गों तक सभी के मन को भाते है| इसलिए हम अपने घरों में छोटे छोटे से पौधे लगाते हैं|वृक्षों पर अनेक प्रकार के पक्षी अपना घोंसला बना कर रहते हैं और उनकी कल कल मधुर ध्वनि पर्यावरण में मधुरता घोलती है|वृक्षों से अनेक प्रकार के स्वाद भरे फल हमारे भोजन को रसमय और स्वादिष्ट बनाते हैं| इनकी छाल और जड़ों से दवाइयां बनाई जाती है|पशु वृक्षों से अपना भोजन ग्रहण करते हैं| इसलिए हमें अपनी धरती के आंचल को अधिक से अधिक हरा-भरा रखने के लिए पेड़ पौधे लगाने चाहिए| यह वर्षा कराने में सहायक होते हैं| मानसूनी हवाओं को रोककर वर्षा कराना पेड़ों का ही काम है|वृक्षों के अभाव में वर्षा नहीं होती है और वर्षा के अभाव में अन्न का उत्पादन नहीं हो पाता है| गृह कार्य में वृक्ष हमें सुखद छाया और मंद पवन देते हैं| सूखे ब्रक्ष ईंधन के काम आते हैं| गृह निर्माण, गृह सज्जा, फर्नीचर, के लिए हमें वृक्षों से ही लकड़ी मिलती है| आमला, चमेली का तेल, गुलाब, केवड़े का इत्र, खस की खुशबू यह सभी वृक्षों और उनकी जडो से ही बनाए जाते हैं|
5.उपसंहार:-
वृक्षों से हमें नैतिकता, परोपकार और विनम्रता की शिक्षा मिलती है| फलों को स्वयं वृक्ष नहीं खाता है| वह जितना अधिक फल फूलों से लगा होगा उतना ही झुका हुआ रहता है| हम जब देखते हैं कि सूखा कटा हुआ पेड़ भी कुछ दिनों में हरा भरा हो जाता है जो जीवन में आशा का संचार का धैर्य और साहस का भाव भरता है| हमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए|
वृक्षारोपण करके ही हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए जीवन उत्तरदाई वातावरण सृजित कर सकते हैं| यदि आज इस दृष्टि से वृक्षों का अस्तित्व मिटा दिया गया तो कल आने वाले समय में इस सृष्टि पर जीवन का होना संभव नहीं होगा|वृक्षों से ही जीवन संभव है, वृक्ष है तो सब कुछ है और यदि वृक्ष नहीं है, तो जीवन में कुछ भी नहीं है| इसलिए हम कह सकते है कि-
"Trees Are Best Friend In Our Life"
अथवा
वृक्षारोपण या वन संरक्षण
अथवा
जीवन में वनो का महत्व
1.प्रस्तावना:-
भारतवर्ष का मौसम और जलवायु देशों में सर्वश्रेष्ठ है, इसकी प्राकृतिक रमणीयता और हरित वैभव विख्यात है विदेशी पर्यटक यहां की मनोहारी प्राकृतिक सुषमा देखकर मोहित हो जाते हैं|
2.प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति में वृक्षों की महत्ता:-
हमारे देश की प्राचीन संस्कृति में वृक्षों की पूजा और आराधना की जाती है|तथा नेतृत्व की उपाधि दी जाती है|बच्चों को प्रकृति ने मानव की मूल आवश्यकता से जोड़ा है| किसी ने कहा है कि- वृक्ष ही जल है, जल ही अन्न है,और अन्न ही जीवन है| यदि वृक्ष न होते तो नदी और आसमान ना होते वृक्ष की जड़ों के साथ वर्षा का जल जमीन के भीतर पहुंचता है, वन हमारी सभ्यता और संस्कृतिके रक्षक है|शांति और एकांत की खोज में हमारे ऋषि मुनि वनों में रहते थे, वहां उन्होंने तत्व ज्ञान प्राप्त किया और वह विश्व कल्याण के उपाय भी सोचते, वही गुरुकुल होते थे| जिसमें भावी राजा, दार्शनिक, पंडित आदि शिक्षा ग्रहण करते थे|आयुर्वेद के अनुसार पेड़ पौधों की सहायता से मानव को स्वस्थ एवं दीर्घायु किया जा सकता है| तीव्र गति से जनसंख्या बढ़ने तथा राष्ट्रों के ओद्योगिक विकास कार्यक्रमों के कारण पर्यावरण की समस्या गंभीर हो रही है| प्राकृतिक साधनों के अधिक और अधिक उपयोग से पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है|वृक्षों की भारी तादाद में कटाई से जलवायु बदल रही है|ताप की मात्रा बढ़ती जा रही है, नदियों का जल दूषित होता जा रहा है, वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है, इसे भी भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य को खतरा है|
3.वृक्षों की उपासना का प्रचलन:-
वृक्षों के महत्व एवं गौरव को समझते हुए हमारी प्राचीन परंपरा में इनकी आराधना पर बल दिया गया है|पीपल के वृक्ष की पूजा करना, व्रत रखकर उसकी परिक्रमा करना एवं जल अर्पण करना और पीपल को काटना पाप करने के सामान है|यह धारणा वृक्षों की संपत्ति की रक्षा का भाव प्रकट करती है| प्रत्येक हिंदू के आंगन में तुलसी का पौधा अवश्य में देखने को मिलता है| तुलसी पत्र का सेवन प्रसाद में आवश्यक माना गया है| बेल के वृक्ष, फल और बेलपत्र की महिमा इतनी है, कि वह शिवजी पर चढ़ाए जाते हैं| कदम वृक्ष को श्री कृष्ण का प्रिय पेड़ बताया है तथा अशोक के वृक्ष शुभ और मंगल दायक हैं| इन वृक्ष की रक्षा हेतु कहते हैं कि-हरे वृक्षों को काटना पाप है, श्याम के समय किसी वृक्ष के पत्ते तोड़ना मना है वृक्ष सो जाते हैं |यह सब हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक है| जिसमें वृक्षों को ईश्वर स्वरूप, वन को संपदा और वृक्षों को काटने वालों को अपराधी कहा जाता है|
4.वृक्षों से लाभ:-
वृक्षों से स्वास्थ्य लाभ होता है क्योंकि मनुष्य के श्वास प्रक्रिया से जो दूषित हवा बाहर निकलती है, वृक्ष उन्हे ग्रहण कर, हमें बदले में स्वच्छ हवा देते हैं| आंखों की थकान दूर करने और तनाव से छुटकारा पाने के लिए विस्तृत वनों की हरियाली हमें शांति प्रदान कर आंखों की ज्योति को बढ़ाती है|वृक्ष बालक से लेकर बुजुर्गों तक सभी के मन को भाते है| इसलिए हम अपने घरों में छोटे छोटे से पौधे लगाते हैं|वृक्षों पर अनेक प्रकार के पक्षी अपना घोंसला बना कर रहते हैं और उनकी कल कल मधुर ध्वनि पर्यावरण में मधुरता घोलती है|वृक्षों से अनेक प्रकार के स्वाद भरे फल हमारे भोजन को रसमय और स्वादिष्ट बनाते हैं| इनकी छाल और जड़ों से दवाइयां बनाई जाती है|पशु वृक्षों से अपना भोजन ग्रहण करते हैं| इसलिए हमें अपनी धरती के आंचल को अधिक से अधिक हरा-भरा रखने के लिए पेड़ पौधे लगाने चाहिए| यह वर्षा कराने में सहायक होते हैं| मानसूनी हवाओं को रोककर वर्षा कराना पेड़ों का ही काम है|वृक्षों के अभाव में वर्षा नहीं होती है और वर्षा के अभाव में अन्न का उत्पादन नहीं हो पाता है| गृह कार्य में वृक्ष हमें सुखद छाया और मंद पवन देते हैं| सूखे ब्रक्ष ईंधन के काम आते हैं| गृह निर्माण, गृह सज्जा, फर्नीचर, के लिए हमें वृक्षों से ही लकड़ी मिलती है| आमला, चमेली का तेल, गुलाब, केवड़े का इत्र, खस की खुशबू यह सभी वृक्षों और उनकी जडो से ही बनाए जाते हैं|
5.उपसंहार:-
वृक्षों से हमें नैतिकता, परोपकार और विनम्रता की शिक्षा मिलती है| फलों को स्वयं वृक्ष नहीं खाता है| वह जितना अधिक फल फूलों से लगा होगा उतना ही झुका हुआ रहता है| हम जब देखते हैं कि सूखा कटा हुआ पेड़ भी कुछ दिनों में हरा भरा हो जाता है जो जीवन में आशा का संचार का धैर्य और साहस का भाव भरता है| हमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए|
वृक्षारोपण करके ही हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए जीवन उत्तरदाई वातावरण सृजित कर सकते हैं| यदि आज इस दृष्टि से वृक्षों का अस्तित्व मिटा दिया गया तो कल आने वाले समय में इस सृष्टि पर जीवन का होना संभव नहीं होगा|वृक्षों से ही जीवन संभव है, वृक्ष है तो सब कुछ है और यदि वृक्ष नहीं है, तो जीवन में कुछ भी नहीं है| इसलिए हम कह सकते है कि-
"Trees Are Best Friend In Our Life"
Essay Of Weightage Of Discipline In Life:निवंध जीवन में अनुशासन का महत्व. क्या हैं?
अनुशासन का महत्व
1.प्रस्तावना:-
अनुशासन शब्द 2 शब्दों से मिलकर बना है- 'अनु+शासन' शासन का अर्थ है- नियम, आज्ञा तथा अनु का अर्थ है- पीछे चलना पालन करना इस प्रकार अनुशासन का अर्थ शासन का अनुसरण करना है, किंतु इसे परतंत्रता मान लेना नितांत अनुचित है| विकास के लिए तो नियमों का पालन करना आवश्यक है, लेकिन युवक की सुख शांति में प्रगतिशीलता का संसार छात्रा अवस्था पर अबलंबित है, अनुशासन आत्मानुशासन का ही एक अंग है|
2.अनुशासन की आवश्यकता:-
जीवन की सफलता का मूल आधार अनुशासन है| समस्त प्रकृति अनुशासन में बंद कर गतिमान रहती है, सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, सागर, नदी, झरने, गर्मी, सर्दी, वर्षा एवं वनस्पतियां आदि सभी अनुशासित हैं| अनुशासन सरकार, समाज तथा व्यक्ति तीन स्वरों पर होता है, सरकार के नियमों का पालन करने के लिए पुलिस, न्याय, दंड, पुरस्कार आदि की व्यवस्था की गई है| यह सभी शासकीय नियमों में बंद कर कार्य करते हैं| सभी बुद्धिमान व्यक्ति उन नियमों पर चलते हैं, एवं जो उन नियमों का पालन नहीं करते हैं, वह दंड के भागी होते हैं सामाजिक व्यवस्था हेतु धर्म समाज आदि द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति सुशील तथा विनर में होते हैं| ऋषि महर्षि अध्ययन के बाद अपने शिष्यों को विदा करते समय अनुशासित रहने पर बल देते थे| वह जानते थे, कि अनुशासित व्यक्ति ही किसी उत्तरदायित्व को वहन कर सकता है, अनुशासित जीवन व्यतीत करना वस्तुत दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाना है| समाज ने जो नियम बनाए हैं वह बरसों के अनुभव के बाद सुनिश्चित किए गए हैं, भारतीय मुनियों ने अनुशासन को अपरिहार्य माना था, कि व्यक्ति का समुचित विकास हो सके, आदेश देने वाला व्यक्ति प्राय आज्ञा दिए गए व्यक्ति का हित चाहता है, अतः अनुशासन में रहना तथा अनुशासन को अपने आचरण में डाल लेना ही अति आवश्यक है, जो लोग अनुशासनहीन होते हैं| वह शब्द एवं उदंड की संख्या से अभिहित किए जाते हैं| एवं दंड के भागी होते हैं|
3.अनुशासन के लाभ:-
अनुशासन के असीमित लाभ हैं, प्रत्येक स्तर की व्यवस्था के लिए अनुशासन आवश्यक है| राणा प्रताप, शिवाजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी आदि ने इसी के बल पर सफलता प्राप्त की थी| इसके बिना बहुत हानि होती है, सन् 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गए स्वतंत्रता संग्राम की सफलता का कारण अनुशासनहीनता थी| 31 मई को संपूर्ण भारत में विद्रोह करने का निश्चय था, लेकिन मेरठ की सेनाओं ने 10 मई को भी विद्रोह कर दिया, जिससे अनुशासन भंग हो गया था|इसका परिणाम सारे देश को भोगना पड़ा अब सब जगह एक साथ विद्रोह ना होने के कारण संज्ञा ने विद्रोह को कुचल दिया था| राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शांतिपूर्वक विशाल अंग्रेजी साम्राज्यबाद की नींद हिला डाली थी|उसका एकमात्र कारण अनुशासन की भावना थी, महात्मा गांधी की आवाज़ पर संपूर्ण देश सत्याग्रह के लिए चल देता था, अनेक-अनेक कष्टों को बोलते हुए भी देशवासियों ने सत्य और अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा पहली बार जब कुछ सत्याग्रहियों ने पुलिस के साथ मारपीट तथा दंगा कर डाला तो महात्मा जी ने तुरंत सत्याग्रह बंद करने की आज्ञा देते हुए कहा- कि अभी देश सत्याग्रह के योग्य नहीं है| लोगों में अनुशासन की कमी है, उन्होंने तब तक उन्हें सत्याग्रह प्रारंभ नहीं किया, जब तक उन्हें लोगों के अनुशासन के बारे में विश्वास नहीं हो गया एवं अनुशासन द्वारा लोगों में विश्वास की भावना पैदा की जाती है| अनुशासन विश्वास का एक महामंत्र है|
4.छात्रानुशासन:-
अनुशासन विद्यार्थी जीवन का तो अपरिहार्य अंग है| क्योंकि विद्यार्थी देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश का भविष्य उन्हीं पर टिका हुआ होता है, उनसे यह अपेक्षा की जाती है, कि वह स्वयं अनुशासित नियंत्रित तथा कर्तव्यपरायण होकर देश की जनता का मार्ग दर्शन करें| उसे अंधकार के दर्द से निकाल कर प्रकाश की ओर ले जय आते हैं, उनके लिए अनुशासन होना अति आवश्यक है|
5.उपसंहार:-
अनुशासन के संदर्भ में मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी का जीवन प्रेरणा दाई है| अनुशासन में होने के कारण ही राम मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने के अधिकारी हुए अनुशासन के अधीन भी राजतिलक त्यागकर वनवासी बन जाते हैं, तथा अपनी पत्नी का परित्याग कर प्रजा की आज्ञा का पालन करते हैं| इस सब का कारण है उनका अनुशासित जीवन निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है, कि जीवन में महान बनने के लिए अनुशासन आवश्यक है| बिना अनुशासन के कुछ भी कर पाना अति असंभव है, अनुशासन से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है, तथा समाज को शुभ दिशा मिलती है| अतः अनुशासित जीवन ही जीवन है, अनुशासित जीवन की आवाज में हमारी जिंदगी दिशाहीन एवं निरर्थक हो जाएगी, यदि जीवन में अनुशासन नहीं है| तो इस मानव जीवन का जीवित रहना भी कताई अनुशासित नही हैं, अनुशासित जीवन ही जीवन है, यदि अनुशासन नहीं है तो जीवन में कुछ भी नहीं है|
1.प्रस्तावना:-
अनुशासन शब्द 2 शब्दों से मिलकर बना है- 'अनु+शासन' शासन का अर्थ है- नियम, आज्ञा तथा अनु का अर्थ है- पीछे चलना पालन करना इस प्रकार अनुशासन का अर्थ शासन का अनुसरण करना है, किंतु इसे परतंत्रता मान लेना नितांत अनुचित है| विकास के लिए तो नियमों का पालन करना आवश्यक है, लेकिन युवक की सुख शांति में प्रगतिशीलता का संसार छात्रा अवस्था पर अबलंबित है, अनुशासन आत्मानुशासन का ही एक अंग है|
2.अनुशासन की आवश्यकता:-
जीवन की सफलता का मूल आधार अनुशासन है| समस्त प्रकृति अनुशासन में बंद कर गतिमान रहती है, सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, सागर, नदी, झरने, गर्मी, सर्दी, वर्षा एवं वनस्पतियां आदि सभी अनुशासित हैं| अनुशासन सरकार, समाज तथा व्यक्ति तीन स्वरों पर होता है, सरकार के नियमों का पालन करने के लिए पुलिस, न्याय, दंड, पुरस्कार आदि की व्यवस्था की गई है| यह सभी शासकीय नियमों में बंद कर कार्य करते हैं| सभी बुद्धिमान व्यक्ति उन नियमों पर चलते हैं, एवं जो उन नियमों का पालन नहीं करते हैं, वह दंड के भागी होते हैं सामाजिक व्यवस्था हेतु धर्म समाज आदि द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति सुशील तथा विनर में होते हैं| ऋषि महर्षि अध्ययन के बाद अपने शिष्यों को विदा करते समय अनुशासित रहने पर बल देते थे| वह जानते थे, कि अनुशासित व्यक्ति ही किसी उत्तरदायित्व को वहन कर सकता है, अनुशासित जीवन व्यतीत करना वस्तुत दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाना है| समाज ने जो नियम बनाए हैं वह बरसों के अनुभव के बाद सुनिश्चित किए गए हैं, भारतीय मुनियों ने अनुशासन को अपरिहार्य माना था, कि व्यक्ति का समुचित विकास हो सके, आदेश देने वाला व्यक्ति प्राय आज्ञा दिए गए व्यक्ति का हित चाहता है, अतः अनुशासन में रहना तथा अनुशासन को अपने आचरण में डाल लेना ही अति आवश्यक है, जो लोग अनुशासनहीन होते हैं| वह शब्द एवं उदंड की संख्या से अभिहित किए जाते हैं| एवं दंड के भागी होते हैं|
3.अनुशासन के लाभ:-
अनुशासन के असीमित लाभ हैं, प्रत्येक स्तर की व्यवस्था के लिए अनुशासन आवश्यक है| राणा प्रताप, शिवाजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी आदि ने इसी के बल पर सफलता प्राप्त की थी| इसके बिना बहुत हानि होती है, सन् 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गए स्वतंत्रता संग्राम की सफलता का कारण अनुशासनहीनता थी| 31 मई को संपूर्ण भारत में विद्रोह करने का निश्चय था, लेकिन मेरठ की सेनाओं ने 10 मई को भी विद्रोह कर दिया, जिससे अनुशासन भंग हो गया था|इसका परिणाम सारे देश को भोगना पड़ा अब सब जगह एक साथ विद्रोह ना होने के कारण संज्ञा ने विद्रोह को कुचल दिया था| राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शांतिपूर्वक विशाल अंग्रेजी साम्राज्यबाद की नींद हिला डाली थी|उसका एकमात्र कारण अनुशासन की भावना थी, महात्मा गांधी की आवाज़ पर संपूर्ण देश सत्याग्रह के लिए चल देता था, अनेक-अनेक कष्टों को बोलते हुए भी देशवासियों ने सत्य और अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा पहली बार जब कुछ सत्याग्रहियों ने पुलिस के साथ मारपीट तथा दंगा कर डाला तो महात्मा जी ने तुरंत सत्याग्रह बंद करने की आज्ञा देते हुए कहा- कि अभी देश सत्याग्रह के योग्य नहीं है| लोगों में अनुशासन की कमी है, उन्होंने तब तक उन्हें सत्याग्रह प्रारंभ नहीं किया, जब तक उन्हें लोगों के अनुशासन के बारे में विश्वास नहीं हो गया एवं अनुशासन द्वारा लोगों में विश्वास की भावना पैदा की जाती है| अनुशासन विश्वास का एक महामंत्र है|
4.छात्रानुशासन:-
अनुशासन विद्यार्थी जीवन का तो अपरिहार्य अंग है| क्योंकि विद्यार्थी देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश का भविष्य उन्हीं पर टिका हुआ होता है, उनसे यह अपेक्षा की जाती है, कि वह स्वयं अनुशासित नियंत्रित तथा कर्तव्यपरायण होकर देश की जनता का मार्ग दर्शन करें| उसे अंधकार के दर्द से निकाल कर प्रकाश की ओर ले जय आते हैं, उनके लिए अनुशासन होना अति आवश्यक है|
5.उपसंहार:-
अनुशासन के संदर्भ में मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी का जीवन प्रेरणा दाई है| अनुशासन में होने के कारण ही राम मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने के अधिकारी हुए अनुशासन के अधीन भी राजतिलक त्यागकर वनवासी बन जाते हैं, तथा अपनी पत्नी का परित्याग कर प्रजा की आज्ञा का पालन करते हैं| इस सब का कारण है उनका अनुशासित जीवन निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है, कि जीवन में महान बनने के लिए अनुशासन आवश्यक है| बिना अनुशासन के कुछ भी कर पाना अति असंभव है, अनुशासन से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है, तथा समाज को शुभ दिशा मिलती है| अतः अनुशासित जीवन ही जीवन है, अनुशासित जीवन की आवाज में हमारी जिंदगी दिशाहीन एवं निरर्थक हो जाएगी, यदि जीवन में अनुशासन नहीं है| तो इस मानव जीवन का जीवित रहना भी कताई अनुशासित नही हैं, अनुशासित जीवन ही जीवन है, यदि अनुशासन नहीं है तो जीवन में कुछ भी नहीं है|